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HOD PROFILE
- पटना कॉलेज के इतिहास में 1936 ई. में स्नातक स्तर पर एक स्वतंत्र विषय के रूप में हिंदी के अध्ययन-अध्यापन की शुरुआत हुई। इसी वर्ष देशी भाषा या वर्नाकुलर से अलग हिंदी की अपनी पहचान बनी।
- रायबहादुर गंगा हिंदी पीठ की स्थापना और पटना कॉलेज में अगले वर्ष से हिंदी में एम.ए. की अनुमति मिली। 1937 में पटना कॉलेज पत्रिका में पहली बार वर्नाकुलर सेक्शन की शुरुआत हुई।
- सन् 1952 में स्नातकोत्तर अध्यापन को यहाँ से हटा दिया गया। इस वर्ष से पटना कॉलेज विशुद्ध अंडर ग्रैजुएट कॉलेज हो गया।
- 1947 में स्नातकोत्तर की कक्षाएँ दरभंगा हाउस में होने लगी। स्नातक और स्नातकोत्तर की कार्यतालिका एक ही बनी रही। इस दौरान यूजी और पीजी के शिक्षक सम्मिलित रूप से योगदान देते रहे।
- 70 के दशक तक पटना वीमेंस कॉलेज की छात्राओं के हिंदी ऑनर्स का वर्ग इसी विभाग में होता रहा।
- इस विभाग में 22 नवम्बर 1931 को कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद का आगमन हुआ था। इनके अलावा आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, बनारसीदास चतुर्वेदी, रामकुमार वर्मा, मैथलीशरण गुप्त, हरिवंश राय बच्चन, रामधारी सिंह दिनकर, जैनेन्द्र, केदारनाथ सिंह, नामवर सिंह, मैनेजर पाण्डेय आदि प्रख्यात लेखकों-आलोचकों-विचारकों, कवियों का आगमन होता रहा।
- सन 2016 ई में आचार्य नलिनविलोचन शर्मा के जन्मशताब्दी में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस विभाग में तुलसीदास, प्रेमचंद और भारतेंदु जैसे लेखकों की जयंती नियमित रूप से मनाई जाती रही है।
- वर्तमान समय में हिंदी विभाग में जनसंचार स्नातक सम्मान का पाठ्यक्रम भी पढ़ाया जा रहा है। बहुत कम समय में ही पाठ्यक्रम की पढ़ाई काफी लोकप्रिय हो चुकी है। विभाग को मीडियाकर्मियों और मीडिया-विशेषज्ञों का निरंतर सहयोग मिल रहा है। विद्यार्थियों के लिए विभाग में भाषा और मीडिया लैब की समुचित व्यवस्था है। यहाँ विभिन्न तकनीकी और पेशेवर विषयों से सम्बन्धित कार्यशालाएँ आयोजित की जाती रही हैं।
- भाषा और साहित्य के विभाग के रूप में हिंदी विभाग की दृष्टि ‘सहित’ भाव रखती है। जनहित या लोकहित के साथ-साथ इसमें संवेदनाओं और अभिव्यक्ति की पूर्णता का बोध भी शामिल है।
- इस विभाग का उद्देश्य जीवन और जगत के प्रति आलोचकीय और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का परिष्कार और संवर्धन करना है। यह विभाग यहाँ के विद्यार्थियों में कला, संस्कृति और संचार के वास्तविक मानवीय मूल्यों की स्थापना चाहता है। शिक्षा-पद्धति के रूप में हम सतत संवाद के पक्षधर हैं।
- संकाय को आरम्भ से ही डॉ. जगन्नाथ राय शर्मा, डॉ. देवेन्द्रनाथ शर्मा, आचार्य नलिनविलोचन शर्मा, डॉ. गोपाल राय, प्रो. चंद्रकिशोर पांडे उर्फ़ निशांतकेतु, डॉ बलराम तिवारी, प्रो. तरुण कुमार जैसे प्रतिबद्ध शिक्षकों का सहयोग मिलता रहा है। भाषाविज्ञान और सौंदर्यशास्त्र से लेकर सृजनात्मक साहित्य और आलोचना में संकाय-सदस्यों का मौलिक योगदान रहा है।
- वर्तमान में यहाँ चार प्राध्यापक अपना सक्रिय योगदान दे रहे हैं जिसमें डॉ. मार्तण्ड प्रगल्भ, अध्यक्ष सह सहायक प्राध्यापक, डॉ. नेहा सिन्हा, सहायक प्राध्यापक, डॉ. सूर्यनाथ सिंह, सहायक प्राध्यापक, डॉ. राधे श्याम, सहायक प्राध्यापक हैं। इसके अतिरिक्त अतिथि शिक्षक, मीडिया एक्सपर्ट आदि की नियमित कक्षाएँ चल रही हैं।
- पठन-पाठन के अतिरिक्त विभाग सक्रिय सांस्कृतिक और साहित्यिक गतिविधियों का केंद्र है।
- इस विभाग में परिचर्चा, संवाद, समारोह, जयंती आदि का नियमित आयोजन होता रहता है।
- विद्यार्थियों से निकट संवाद हेतु समय-समय पर कला, तकनीक और कौशल से सम्बन्धित कार्यशालाओं और छात्र-शिक्षक-अभिभावक की सम्मिलित बैठकों का आयोजन होता रहता है।
- अथिति व्याख्यान, फिल्म प्रदर्शन, मीडिया वर्कशॉप, फोटोग्राफी, रिकार्डिंग, फिल्म-निर्माण जैसे कार्यक्रमों का आयोजन यहाँ नियमित रूप से होते रहे हैं।
पटना कॉलेज से निकले विद्यार्थी वैश्विक पटल पर जीवन के हर क्षेत्र में अपना योगदान दे रहे हैं। सामाजिक, राजनीतिक और आकादमिक गतिविधियों के अभेद को स्थापित करने में शिक्षक की भूमिका का निर्वहन राज्यकीय, केन्द्रीय और अनेक निजी विश्वविद्यालयों में यहाँ के विद्यार्थी कर रहे हैं। मसलन दिल्ली विश्वविद्यालय में सक्रिय प्रो. अपूर्वानन्द, डॉ. आशुतोष, डॉ. संजीव या डॉ अनिरुद्ध के काम-काज का उदाहरण लिया जा सकता है। दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व-अध्यक्ष प्रो. गोपेश्वर सिंह का हिंदी-शिक्षण में अप्रतिम योगदान रहा है। सरकारी विभागों में राजभाषा अधिकारी, प्रशासनिक अधिकारी, सामान्य-परीक्षाओं में उतीर्ण होने और नौकरी करने वाले, दुभाषिये, दूतावास में काम करने वाले, अनुवादक इन सभी भूमिकाओं में योगदान।
- परंपरा और नवीनता का संगम: पुनर्नवा
- ज्ञान, कला और कौशल का संगम: मनुष्यता
- भाषा सम्प्रेषण में निपुणता: अभिव्यक्ति की आजादी
- साहित्य और संस्कृति की बहुरूपता: अभेद की स्वीकृति
- प्रगतिशील मानव मूल्यों का अन्वेषण: शोध और आलोचना
- तकनीक की सीख और सीख की तकनीक: स्मार्ट क्लास, विसुअल, कंप्यूटर और पाठन
- पाठेतर अकादमिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ
- सृजनात्मकता और कौशल विकास
- अंतर्विषयक रुचि का विकास
- समाज और संस्कृति में मानवीय हस्तक्षेप की प्रेरणा देना